बेटे बेटी के लिये संजोये, क्या ह्सीन ख्वाबों में खोये।
हर पिता वहीं को दौड रहा है, दिशा सपनों की मोड रहा है।
शिक्षा की इस मंडी में, कोटा की तलवंडी में।
धंधे का तूफान मचा है, इससे नहीं यहॉं कोई बचा है।
उद्योग क्षेत्र सा विकसित है अब, पा के दाखिला पुलकित हैं सब।
जीवन भर की बचत यहॉं पर, करते हैं कुरबान यहॉं पर।
बच्चों के केरियर के हेतु, शायद यही सिध्द हो सेतु।
बाप इसी सपने को सजाये, फलीभूत हों सब आशायें।
इसी बात पर लुटता जाता, सारी बचत तलवंडी में चढाता।
लुटे अरे दो साल तक, ना हो बच्चा पास।
बाप तो पागल सा फिरे, टूट गई सब आस।
अपने बच्चे की योग्यता, पहले करना जॉंच।
फिर कोटा में भेजना, नहीं आयेग़ी आंच
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