क्या खोया क्या पाया जग में
मिलते और बिछडते मग मे
मुझे किसी से नहीं शिकायत
यद्यपि छला गया पग पग में
एक दृष्टि बीती पर डालें,
यादों की पोटली टटोलें
अपने ही मन से कुछ बोलें
जन्म मरण का अवरित फ़ेरा
जीवन बंजारों का डेरा
आज यहाँ कल वहाँ कूच है
कौन जानता किधर सवेरा
अंधियारा आकाश असीमित,
प्राणों के पंखों को तोलें
अपने ही मन से कुछ बोलें
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