01 मई 2010

परवाना खुद शमा की लौ पे जल मरा कोई क्या करें

क्यों नही समझता तू दर्द को मेरे कभी
क्यों समझता है कि मेरे सीने मे कोई दिल नहीं

क्यों मरा कैसे मरा चाहे जिस पे इल्जाम दे
पर सच बता हमदम मेरे क्या तू मेरा कातिल नहीं

खुद खुशी पाई ना आंचल तेरे खुशियां भर सका
बेमेल प्यार से किसी को कुछ हुआ हासिल नहीं

परवाना खुद शमा की लौ पे जल मरा कोई क्या करें
शमा तो परवाने की हुई कैसे भी कातिल नहीं

तेरे चाहने वालो की कतार हो पर ऐसा भी हो
तू जिसे चाहे सिवा मेरे कोई शामिल नहीं

बजता नहीं सुर से तो कोई और साज थाम ले
यूं साज ए दिल का तार तार तोडना कोई हल नहीं

हौले हौले यादे खुद दिल मे वो इतनी भर गया
अब शिकायत उसको मै क्यों भूलता इक पल नहीं

एहसासों के रिश्ते तोड़े नहीं जाते

जब मौत का पैगाम आये,
फ़रिश्ते मोड़े नहीं जाते,
दूर रह के हर रिश्ता तोड़ दो,
एहसासों के रिश्ते तोड़े नहीं जाते,
दुआ है तुझे भूलने से पहले,
सासें टूट जाएँ मेरी,
इक बार जो टूटे दिल के,
टुकड़े जोड़े नहीं जाते,
हर ज़ख्म सहने की,
हिम्मत जोड़ लेते हैं,
कुछ ज़ख्म ऐसे होते हैं,
खुल्ले छोड़े नहीं जाते,
गर जुदा भी हुए कभी,
बस बदन ही अलग होंगे,
इतने पक्के यादों के धागे,
ज़माना लाख कोशिश कर ले,
कभी तोड़े नहीं जाते...
कभी तोड़े नहीं जाते!

24 फ़रवरी 2010

जैसे रिश्‍ता कोई जन्‍मों का हो

तुम इतनी जिद्दी क्‍यूँ
होया फिर जिद्दी होते हुए
इतनी प्‍यारी क्‍यूँ हो
।जिद तो ठीक है लेकिन
किसी पल बिना तोड़े जिद
दे सकती हो अहसास
जिद तोड़ने का।
तुम कभी बतालाओगी मुझसे
उसी तरह,
जब संकोच के बावजूद
बेझिझक जता देती थी तुम
अपनापन कुछ ही क्षणों में
जैसे रिश्‍ता कोई जन्‍मों का हो।
मेरी वेदना का दर्द भी
हिला न पाया तुम्‍हें।
यदि यह तुम्‍हारे मन से होता
तो मंजूर होता भी
पर यह तो समाज से डरना हुआ
और वो भी उस समाज से
जिसकी न कोई रीढ़ है,
जिसकी न कोई नीति है।

22 फ़रवरी 2010

फिर धीरे-धीरे यहाँ का मौसम बदलने लगा है

फिर धीरे-धीरे यहाँ का मौसम बदलने लगा है,
वातावरण सो रहा था, अब आँख मलने लगा है।
पिछले सफ़र की ना पूछो, टूटा हुआ एक रथ है,
जो रुक गया था कहीं पर फिर साथ चलने लगा है।
ये घोषणा हो चुकी है कि मेला लगेगा यहाँ पर,
हर आदमी घर पहुंचकर, कपड़े बदलने लगा है।

अब तक तो दर्पण टूटा था

अब तक तो दर्पण टूटा था कोई अक्स भी आज तोड़ गया
पहले छूटे रिश्ते नाते लेकिन इक साया साथ में था


जाने कहाँ हम से चूक हुई साया भी साथ को छोड़ गया
पहले भी जख्म मिले हैं बहुत पर वक्त ने उनको भर डाला


नासूर से भी ज्यादा गहरा कोई जख्म वो दिल पे छोड़ गया
वो पल पल हमे आजमाता रहा हम प्यार समझते चले गये


आजमाईश ही अजमाइश में वो दिल का शीशा तोड़ गया
लगता था खुशियाँ ही खुशियाँ दामन में भर देगा

वो जान से प्यारा यार मेरा मेरी आँख में आंसू छोड़ गया
बेखबर से थामे हाथ उसका हम चलते गये चलते ही गये

अब जाऊं कहाँ कुछ सूझे ना ऐसे मोड़ पे वो हमे छोड़ गया

वो अपनी राह में चली गयी मै अपनी राह पे चला गया

जो होना था जो होता है आखिरकार तो वो ही हुआ

वो अपनी राह में चली गयी मै अपनी राह पे चला गया

इक बार कहा था उसने हमें जो होगा दोनों निपट लेंगे

बिंदास जियो और खुल के जीयो हैं साथ तो सबसे निपट लेंगे

वो मेरे करीब इतना आई मै समझा सब कुछ सुलझ गया

अहसास हुआ छोटेपन का जब छिटक के उसने दूर किया

मै और तेरे साथ मुझे पागल समझा है उसने कहा

ये तेरा इम्तहान था जिसमे तू बिलकुल ही फेल रहा

अपनी ही नजरो में मुझे उसने इस हद तक गिरा दिया

ना खुदा मिला ना यार मिला ना इधर का रहा ना उधर का रहा

शायद कुछ भी हासिल ना हो तुझ को मेरे वीराने में

वापिस लौट जा ऐ राही या राह बदल ले फिर कोई

शायद कुछ भी हासिल ना हो तुझ को मेरे वीराने में

तेरा मिलना तय था बेशक जीवन के इस सफर में लेकिन

तेरा बिछुड़ना सोचा तक नही हमने जाने अनजाने में

कुछ भी मुमकिन नजर तुझे नही आता अपनी कहानी में

पर कुछ भी नामुमकिन सा नही ऐ दोस्त मेरे अफसाने में

रंग रूप या धन दौलत यौवन फर्क ये सब मिट सकते हैं

पर फर्क उम्र का मिट नहीं पाना तेरे मेरे मिटाने से

फूल से ज्यादा हमको फूल की महक सुहानी लगती है

फूल कहाँ अच्छा लगता है खिलता हुआ वीराने में

तेरे गोरे बदन से ज्यादा गर मन में तेरे कोई ना झांके

तो फर्क बचा क्या गली के आशिक और तेरे दीवाने में

मंजिल बदल नही सकते तो आ राहों को बदले हम

हमसफर रहो तुम राहो में तो मजा है चलते जाने में

मंजिल हो कोई राहे हो कोई मतलब तो तेरे साथ से है

तुम साथ रहो तो फर्क नहीं मंजिल खोने या पाने में

बात वही होत्ती है तो फिर फर्क क्यों इतना होता है

खुद वही बात समझने में और औरो को समझाने में

19 फ़रवरी 2010

शायरी

किसी दिन तेरी नजरों से दूर हो जायेंगे हम,

दूर फिजाओं में कहीं खो जायेंगे हम।

मेरी यादों से लिपट के रोने आओगे तुम,

तब ज़मीन को ओढ़ के सो जायेंगे हम…

मेरी बर्बादी पर तू कोई मलाल ना करना,

भूल जाना मेरा ख्याल ना करना,

हम तेरी खुशी के लिए कफ़न ओढ़ लेंगे,

पर तू मेरी लाश से कोई सवाल ना करना…॥

नज़रों को नज़रों की कमी नहीं होती,

फूलों को बहारों की कमी नहीं होती,

फिर क्यूँ हमें याद करोगे आप,

आप तो आसमान हो और आसमान को सितारों की कमी नहीं होती।

मुश्किल है अपना मेल प्रिये

मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये।

तुम एम. ए. फ़र्स्ट डिवीजन हो, मैं हुआ मैट्रिक फ़ेल प्रिये।

तुम हो अफ़्सर की बेटी, मैं तो किसान का बेटा हूँ।

तुम रबडी खीर मलाई हो, मैं सत्तू सपरेटा हूँ।

तुम ए. सी. घर में रहती हो, मैं पेड के नीचे लेटा हूँ।

तुम नयी मारूती लगती हो, मैं स्कूटर लम्बरेटा हूँ।

इस कदर अगर हम छुप-छुप कर, आपस मे प्रेम बढायेंगे।

तो एक रोज़ तेरे डैडी अमरीश पुरी बन जायेंगे।

सब हड्डी पसली तोड मुझे, भिजवा देंगे वो जेल प्रिये।

मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये।

तुम अरब देश की घोडी हो, मैं हूँ गदहे की नाल प्रिये।

तुम दीवाली की बोनस हो, मैं भूखों की हडताल प्रिये।

तुम हीरे जडी तश्तरी हो, मैं एल्मुनिअम का थाल प्रिये।

तुम चिकेन-सूप बिरयानी हो, मैन कंकड वाली दाल प्रिये।

तुम हिरन-चौकडी भरती हो, मैं हूँ कछुए की चाल प्रिये।

तुम चन्दन-वन की लकडी हो, मैं हूँ बबूल की चाल प्रिये।

मैं पके आम सा लटका हूँ, मत मार मुझे गुलेल प्रिये।

मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये।

मैं शनि-देव जैसा कुरूप, तुम कोमल कन्चन काया हो।

मैं तन-से मन-से कांशी राम, तुम महा चन्चला माया हो।

तुम निर्मल पावन गंगा हो, मैं जलता हुआ पतंगा हूँ।

तुम राज घाट का शान्ति मार्च, मैं हिन्दू-मुस्लिम दन्गा हूँ।

तुम हो पूनम का ताजमहल, मैं काली गुफ़ा अजन्ता की।

तुम हो वरदान विधाता का, मैं गलती हूँ भगवन्ता की।

तुम जेट विमान की शोभा हो, मैं बस की ठेलम-ठेल प्रिये।

मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये।

तुम नयी विदेशी मिक्सी हो, मैं पत्थर का सिलबट्टा हूँ।

तुम ए. के.-४७ जैसी, मैं तो इक देसी कट्टा हूँ।

तुम चतुर राबडी देवी सी, मैं भोला-भाला लालू हूँ।

तुम मुक्त शेरनी जंगल की, मैं चिडियाघर का भालू हूँ।

तुम व्यस्त सोनिया गाँधी सी, मैं वी. पी. सिंह सा खाली हूँ।

तुम हँसी माधुरी दीक्षित की, मैं पुलिसमैन की गाली हूँ।

कल जेल अगर हो जाये तो, दिलवा देन तुम बेल प्रिये।

मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये।

मैं ढाबे के ढाँचे जैसा, तुम पाँच सितारा होटल हो।

मैं महुए का देसी ठर्रा, तुम ब्लैक-लेबल की बोतल हो।

तुम चित्रहार का मधुर गीत, मैं कॄषि-दर्शन की झाडी हूँ।

तुम विश्व-सुन्दरी सी कमाल, मैं तेलिया छाप कबाडी हूँ।

तुम सोनी का मोबाइल हो, मैं टेलीफोन वाला हूँ चोंगा।

तुम मछली मानसरोवर की, मैं सागर तट का हूँ घोंघा।

दस मन्ज़िल से गिर जाउँगा, मत आगे मुझे ढकेल प्रिये।

मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये।

तुम सत्ता की महरानी हो, मैं विपक्ष की लाचारी हूँ।

तुम हो ममता-जयललिता सी, मैं क्वारा अटल-बिहारी हूँ।

तुम तेन्दुलकर का शतक प्रिये, मैं फ़ॉलो-ऑन की पारी हूँ।

तुम गेट्ज़, मटीज़, कोरोला हो, मैं लेलैन्ड की लॉरी हूँ।

मुझको रेफ़री ही रहने दो, मत खेलो मुझसे खेल प्रिये।

मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये।

उसे मेरा या मुझे उसका कर दे

ऐ खुदा आज ये फैसला कर दे,
उसे मेरा या मुझे उसका कर दे।
बहुत मुश्किल लगता है उस से दूर रहना,
जुदाई के इस सफ़र को कम कर दे।
नहीं लिखा अगर मेरे नसीब में उसका प्यार,
खत्म कर ये ज़िन्दगी और मुझे फनाह कर दे

हम ने हमेशा उसे दिल से चाहा

जिंदा दिल हैं हंस कर दो गम सह लेंगे,

हर गम में उसका साथ हो ये ज़रूरी तो नहीं।

यूँ तो वो बहुत वाफशार हैं, मगर फिर भी,

हर कदम पे वफ़ा करे ये ज़रूरी तो नहीं।

हौसले और भी भर जायेंगे शिकस्त के बाद,

जीत यहाँ सदा हमारी हो ये ज़रूरी तो नहीं।

शिद्दत-ऐ-ग़म में इंसान रो भी देता है,

सामने उसका आँचल हो ये ज़रूरी तो नहीं।

नज़रें थी बस क्या करती पत्थर हो गयी,

उसके बाद किसी और को देखें ये ज़रूरी तो नहीं।

हम ने हमेशा उसे दिल से चाहा,

वो भी हमें चाहे दिल से ये ज़रूरी तो नहीं....

क्यों दूर चला जाता है कोई

क्यों दिल के इतने करीब आ जाता है कोई

क्यों प्यार का एहसास दिलाता है कोई

जब आदत सी हो जाती है दिल को किसी की

क्यों दूर चला जाता है कोई

मत करवाओ इंतजार इतना की

वक़्त के फासले पर तुमको भी अफ़सोस हो जाये

तुम्हारा फ़ोन आये और हम खामोश हो जाये....

शिक्षा की मंडी कोटा

बेटे बेटी के लिये संजोये, क्या ह्सीन ख्वाबों में खोये।

हर पिता वहीं को दौड रहा है, दिशा सपनों की मोड रहा है।

शिक्षा की इस मंडी में, कोटा की तलवंडी में।

धंधे का तूफान मचा है, इससे नहीं यहॉं कोई बचा है।

उद्योग क्षेत्र सा विकसित है अब, पा के दाखिला पुलकित हैं सब।

जीवन भर की बचत यहॉं पर, करते हैं कुरबान यहॉं पर।

बच्चों के केरियर के हेतु, शायद यही सिध्द हो सेतु।

बाप इसी सपने को सजाये, फलीभूत हों सब आशायें।

इसी बात पर लुटता जाता, सारी बचत तलवंडी में चढाता।

लुटे अरे दो साल तक, ना हो बच्चा पास।

बाप तो पागल सा फिरे, टूट गई सब आस।

अपने बच्चे की योग्यता, पहले करना जॉंच।

फिर कोटा में भेजना, नहीं आयेग़ी आंच

कितने इसके तारे टूटे

जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अंबर के आंगन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फ़िर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई
ये तो केवल सोचने की बात है

क्या खोया क्या पाया जग में


क्या खोया क्या पाया जग में

मिलते और बिछडते मग मे

मुझे किसी से नहीं शिकायत

यद्यपि छला गया पग पग में

एक दृष्टि बीती पर डालें,

यादों की पोटली टटोलें

अपने ही मन से कुछ बोलें

जन्म मरण का अवरित फ़ेरा

जीवन बंजारों का डेरा

आज यहाँ कल वहाँ कूच है

कौन जानता किधर सवेरा

अंधियारा आकाश असीमित,

प्राणों के पंखों को तोलें

अपने ही मन से कुछ बोलें

तू ही बता !

सपनों कि मंजिल को, तू जा रही है छोड़ के।

तू मुड़ के देख यहां पे, तू किसको जा रही है छोड़ के।

वो वादें वो कसमें, वो इरादें वो बातें, वो तन्हाई भरी रातें

तू याद कर फिर सोच ले, तू जा रही है किसको छोड़ के।

हर गम के बसेरों में तेरा साथ मैने पाया है

आज हू मैं अकेला, जा रही है तू मझे छोड़ के।

यादों की दीवारों पे लिखा है नाम तेरा

वो झांकती झरोखों से तेरी आंखे

किसे भूलूं तू ही बता, किधर को जाऊं तू ही बता।

18 फ़रवरी 2010

तेरे आने की जिद लिए बैठा हूं मैं...

तेरे आने की जिद लिए बैठा हूं मैं...

तेरे यादों में जीने के लिए बैठा हूं मैं...

सूनी राह को तकती है हरपल मेरी आंखें..

वो धूप की छांवों में तेरा इंतजार लिए बैठा हूं..

अपने आप की तलाश में भटकता हुआ.....

तेरे करीब आने की फिराक में बैठा हूं मैं....

लोंगो की नसीहतों को नकारता जा रहा हूं ..

तुझे बेपर्दा होकर जाते देख रहा हूं मैं...

काश तू एक नजर भर देख लेती मेरी निगाहों को...

तो यूं न तेरे इंतजार में बैठा होता मैं...

रंग नया है लेकिन घर ये पुराना है


रंग नया है लेकिन घर ये पुराना है,
ये कूचा मेरा जाना पहचाना है ।
क्या जाने क्यों उड़ गए पंछी पेड़ों से,
भरी बहारों में गुलशन वीराना है ।
सारी बस्ती चुप की गर्द में डूब गयी,
शिकवा जो करता है वह दीवाना है ।
मेरी मंजिल शहर ऐ वफ़ा से आगे है,
तुमको तो दो चार कदम ही जाना है।
आपका दामन कल तक मेरा दामन था,
आज वह दिन ख्वाब है या अफसाना है।
रिंद जहाँ सब एक जाम से पीते थे ,
आज न वो मैख्वार न वो मैखाना है ।
आओ पहला जाम पियें "रजनीश" के नाम ,
जिसने ज़हर के घूँट को अमृत जाना है ..... ॥

कभी झूठा समझता है कभी सच्चा समझता है

कभी झूठा समझता है कभी सच्चा समझता है। ये उसके मन पे छोड़ा है, जो वो अच्‍छा समझता है।

मैं पंछी हूं मुहब्‍बत का, फ़क़त रिश्‍तों का प्‍यासा हूं
ना सागर ही मुझे समझे ना ही सहरा समझता है.

उसी कानून के फिर पास क्‍यों आते हैं सब
जिसको कोई अँधा समझता है कोई गूंगा समझता है.

जो जैसे बात को समझे उसे वैसे ही समझाओ
शराफ़त का यहां पर कौन अब लहजा समझता है.

मुसाफिर हैं नए सारे सफ़र में ज़िंदगानी के
यहाँ कोई नहीं ऐसा जो ये रस्ता समझता है.

कोई तुझको सच नही बतलायेगा

अब के जब सावन घुमड़ कर आएगा,
दिल पे बदली याद की बरसाएगा।

मन से अँधियारा मिटेगा जब, तभी
अर्थ दीवाली का सच हो पायेगा।

दूसरे की गलतियाँ तो देख ली,
ख़ुद को आइना तू कब दिखलायेगा।

अपने बारे में किसी से पूछ मत,
कोई तुझको सच नही बतलायेगा।

धुन में अपनी चल पड़ा पागल सा है,
दर बदर अब मन मुझे भटकायेगा।

गर्दिशों में छोड़ देंगे सब तुम्हे,
फिर तू मंजिल को पा जाएगा।

भिखारी की तरह तेरे दर पे खड़ा हूँ

तेरे साथ कुछ पल गुज़ारने को मिलें,

खुशी से गम का दरिया छोड़ चला आऊंगा,

ग़मों की ग़ुरबत को अलविदा कह के,

तेरे हुकूमत को रहने चला आऊंगा,

हर वक्त तेरी याद से थक चुका हूँ,

बस अब तुझे ख़्वाबों में बुला लाऊंगा,

भिखारी की तरह तेरे दर पे खड़ा हूँ,

क्या मोहब्बत की खैरात भला पाउँगा,

खुशनसीबी होगी गर तेरा एहसास मिले,

वरना तेरी यादों संग अस्मसान चला जाऊंगा

कहीं बाद में धोखा खाना न पड़े


काश कोई रिश्ता निभाना न पड़े,
किसी को यूँ छोड़ के जाना न पड़े,
यादों की शम्मा को जला के कभी,
बेदर्दी से उसको बुझाना न पड़े,
करीबी लोगो से रखना परहेज,
कहीं बाद में धोखा खाना न पड़े,
चिलमन-ऐ-नैन खामोश ही रखना,
मुफलिसी में इन्हे झुकाना न पड़े,
तन्हाई में पी लूँ आज कुछ मैं ऐसे,
मयखाने में जाम छलकाना न पड़े,
बुला ले खुदा दूर इतना मुझे,
ज़माने की महफ़िल में आना न पड़े।

जाते जाते मेरा आखिरी सलाम तू ले जा

क्या मिला मुझे दुनिया में अपने होने के बाद,
अश्कों ने साथ छोड़ दिया हर पल रोने के बाद,
किया करते थे गुमां जिनकी दोस्तियों पे हम,
न रहे वो भी अपने सब कुछ खोने के बाद,
अब क्यों मैं हर पल हँसता हूँ रोने का बाद,
क्या जीना फिर भी पड़ता है खोने के बाद,
जाते जाते मेरा आखिरी सलाम तू ले जा,
शायद फिर न उठ पाऊँ रात सोने के बाद

तू जिस हाल में रहे हमेशा मुस्कुराती रहे......

कभी अचानक इक आहट के बदले हम नींद उडाये जाते हैं....

वोह जो हो चुके हैं हमसे दूर उन्हें खयालो में लाये जाते हैं......

जो ख़ुद बुझा गए हैं इस दिल से मुहब्बत के चरागों को.....

हम क्यों ठंडी पड़ी राख से शम्मा को जलाए जाते हैं.....

इक वक्त था जब उन्ही से सुबह और उन्ही से रात होती थी.....

अजनबियों से भी गाहे बगाहे उन्ही की बात होती थी.......

अब वक्त ने ही कुछ ऐसे करवट ले ली मुझे जताने को.....

अजनबियों में ही उन्हें पाने की आस लगाए जाते हैं......

चलो घड़ी भी आ गई है इस दुनियाँ से अब जाने की......

रूहानी जन्नत के इंतज़ार में तेरी मुहब्बत की जन्नत खोने की.....

तू जिस हाल में रहे हमेशा मुस्कुराती रहे......

मर के भी तेरी सलामती की खुदा से दुआ किए जाते हैं.....

अब क्या हासिल हो रोने से........

ज़िन्दगी के सफ़र में चलते हुए कुछ राहगीर मिले अपने से....
घर से जब निकले अकेले ही थे अब सब लगने लगे हैं अपने से.....
कुछ गमो को दिल में ही रखा था आसुओं को सब से छुपाया था.....
आँखों ने सब कुछ बयां किया समझा नहीं जाता कहने से.....
कब तक अश्कों को समोए रखूं इन पलकों के परदे में......
बस हार गया हूँ किस्मत से, रोका नहीं जाता बहने से......
शायद खुदा मेरी फरियाद सुने जलते हुए दिल के कोने से.....
यह दोज़ख मैंने खुद हे चुनी, अब क्या हासिल हो रोने से....
अब क्या हासिल हो रोने से........

क्या खोया क्या पाया मैंने.....

अक्सर कभी सोचता हूँ ज़िन्दगी में क्या खोया क्या पाया मैंने.....
दुनिया के बनाए हर रिश्ते को शिद्दत से निभाया मैंने.....
फिर भी इक कसक सी दिल में उठती है की कुछ तो नदारद है....
शायद सब कुछ पा के भी कुछ भी न पाया मैंने.....
चमकते थे रौशनी में पर मोम से बने थे रिश्ते.....
अक्सर जज्बातों की आग में पिघलने से बचाया मैंने......
सुना था वक्त का पहिया वक्त बदल देता है कभी भी...
उसी वक्त के हाथों ख़ुद को नाचता पाया मैंने.....
गर तेरा सजदा करता तो शायद जन्नत नसीब पाता....
झूठे नातों को निभाने में बेशकीमती पल गवाया मैंने.....

कितना आसान होता है न रिश्तों को यूं तोड़ देना

जन्मों जन्म के वादे बना के,
ख्वाबों की मीठी बातें सुना के,
कितना आसान होता है न रिश्तों को यूं तोड़ देना।
ज़िन्दगी के हर क़दम साथ निभा के,
लडखडाते क़दमो से बाहों में उठा के,
कितना आसान होता है न राहों को यूं मोड़ देना।
गुमनामियों की गर्त में रौशनी दिखा के,
फिर कलाई पे अपनी नाम मेरा लिखा के,
कितना आसान होता है न बीच राह यूं छोड़ देना।
ज़माने से छुप छुप संग मेरे घूम के,
लरज़ते लबों से मेरे लबों को चूम के,
कितना आसान होता है न किसी और से नाता जोड़ लेना।
आखिरी वक्त तुझे देखने की आरजूएं सजा के,
फिर हमेशा की तरह तुझे न करीब पा के,
कितना आसान होता है न साँसों की ज़ंजीर यूं तोड़ देना।

बेवजह सब लोग जाने मौत से डरते है क्यों

मौत मेरी हादसा या खु्दकशी हरगिज नहीं

कत्ल है बस आपको कातिल नजर आता नहीं

इस तरह से यार मेरा, कत्ल मेरा कर गया

यू लगा जैसे मै अपनी आयी मौत मर गया

बेवजह सब लोग जाने मौत से डरते है क्यों

मै तो अपनी जिन्दगी का चेहरा देख के डर गया

सांसो के सिवा जिन्दगी ने जिन्दगी भर क्या दिया

लो आज़ उसका ये भी कर्ज़ हमने वापिस कर दिया

दूजो का दर्द बाँटने की ये भी क्या आदत हुई

इक इक कर झोली में अपनी दर्द ही दर्द भर लिया

कशमक्श मे यार को देखा तो हमने ये किया

खुद ही अपना सर खन्जर पे जाके धर दिया

जब भी चाहा जिन्दगी को खूबसूरत मोड़ दे

जिन्दगी मे जब सही कोई फैसला हमने लीया

वक्त ने हर बार हमको गल्त साबित कर दिया

लम्हों की क्या कद्र थी जाकर पता ये तब चला

वक्त ने हिसाब जब एक एक लम्हे का लिया

क्या पता कब वक्त होता है किसी पे मेहरबाँ

वक्त ने जब भी लिया हम से तो बदला ही लिया

हम तो नासमझी मे यारा भूल कोई कर गये

खुद से भी तो पूछ लो तुमने आखिर क्या किया

जब भी चाहा जिन्दगी को खूबसूरत मोड़ दे

हालात ने इस जिन्दगी को और बदरंग कर दिया

लम्हा लम्हा करके आखिर काट ही दी जिन्दगी

आखिरी लम्हो मे क्या सोचे, कि आखिर क्या किया

उलझन सुलझने की जगह और उलझती गयी

चाह कर भी दूरीयां दोनों नही मिटा सके

हम भी ठहरे रह गए तुम भी ना चल के आ सके

उलझन सुलझने की जगह और उलझती गयी

कुछ तुम से ना सुलझ सकी कुछ हम नही सुलझा सके

सब कुछ समझ के भी ना दोनों कुछ समझ सके

कुछ तुम नहीं समझ सके कुछ हम नही समझा सके

बात बिगड़ी थी तो बन भी सकती थी चाहते अगर

कुछ तुम ने भी चाहा नही कुछ हम नहीं बना सके

लौट कर पक्षी घरौंदे की तरफ सब चल दिए

कुछ ऎसी राह भटके लौट कर ना वापिस आ साके

तेरे मिटाने से नहीं मिटना मेरा नामो निशां

इस हस्ती को तो नाम वाले भी नहीं मिटा सके

मौत मेरी सौत तेरी बन के जब आ जायेगी

किस कद्र तकलीफ दी है जिन्दगी तूने मुझे
अब तो तेरे नाम से होने लगी नफरत मुझे
पहले तेरे बिन कभी कोई मुझे भाता न था
अब तुझ से दूर जाने की होने लगी चाहत मुझे
आज तेरी नजरो में मेरी कोई कीमत नहीं
कल बहुत महसूस होगी मेरी जरूरत तुझे
पर मुझे अफसोस है तब मैं ना लौट पाऊंगा
सौत की बाहों में जो इक बार चला जाऊंगा
तुमने तो ठुकरा दिया तनहा किया भुला दिया
पर देख लेना वो मुझे हरगिज नहीं ठुकराएगी
तुमने साथ ना दिया तो ना सही मर्जी तेरी
सौत तेरी बावफा है साथ लेकर जायेगी
सौतन के इन्तजार की तारीफ कर सके तो कर
जिस भी पल तूम छोड़ देगी वो मुझे अपनायेगी
छीनने की उसने कोशिश इसलिए ही की नहीं
जानती थी एक दिन तूं खुद उसे दे जायेगी
सौत तेरी हो तो हो पर मेरी महबूबा है वो
मैं भी खुशी से चलूँगा जब वो लेने आयेगी
दर्द तन्हाई का शायद तब तुझे महसूस हो
मैं चला जौउगा जब और तनहा तूं रह जायेगी
तूं सात फेरे में भी अपना बन सकी ना बना सकी
वो एक फेरे में ही मेरी जान तक ले जायेगी
मौत मेरी सौत तेरी बन के जब आ जायेगी
देख लेना उस घड़ी तूं बहुत पछताएगी

काश वो नज़ारा मैने तुमको दिखलाया ना होता

कटने को अकेले भी मजे से कट रही थी जिन्दगी
सब उम्मीदे मर चुकी थी हर तमन्ना दफन थी
माना कोई खुशी ना थी लेकिन कोई गम भी ना था
जब तक ना तुम मुझ से मिली मै मिला तुम से ना था
तुम से क्या मिला कि हर उम्मीद जिन्दा हो गयी
सोच मेरी फिर से इक उडता परिन्दा हो गयी
सोये हुए अरमान सारे एक ही पल मे जग गये
हर दबी उमंग को फिर पख जैसे लग गये
मेरी उम्मीदे मेरी उमगे मेरी तमन्ना मेरे अरमा
मस्त होकर उड रहे थे सब खुले आकाश में
क्या हंसी नजारा था सारा गगन हमारा था
तुझको दिखाने के लिये मने तुझे पुकारा था
बस इक नज़र डाली थी तुमने उस भरे आकाश मे
मेरी तमन्ना मेरी उमंगे और मेरे विश्वास पे
फिर घायल पक्षी की तरह सब नीचे को गिरने लगे
कुछ तडफडाते गिर पडे कुछ गिरते ही मरने लगे
देखते ही देखते आकाश खाली हो गया
मानो किसी गरीब की रोटी की थाली हो गया
मै तो था उदास मगर तुम मुस्करा रही थी
अपने किये काम पे शायद बहुत इतरा रही
अलविदा कहते कह्ते दूर होती जा रही थी
काश वो नज़ारा मैने तुमको दिखलाया ना होता
तुम मेरी होती ना होती मै तो यूं तन्हा ना होता

इन्सां की कोई कद्र नही और पत्थर पूजते फिरते हो

भूखा प्यासा ठुकराया सा जीना भी कोई जीना है

चुपडी ना सही रूखी तो मिले मतलब तो है खाने से

फिसलन भरी राहों में अक्सर कदम फिसल ही जाते हैं

किसे नहीं मालूम सभलना बेहतर है गिर जाने से

जिन राहों मे फिसलन हो वहां कदम संभल के रखना तुम

संभल के चलना ही बेहतर है गिर कर के पछताने से

बाज़ार नहीं उतरा तो क्या पता कि कीमत कितनी है

हासिल क्या है घर बैठे खुद अपने दाम लगाने से

इस जान के जाने से ही तेरे दर पे आना छूटेगा

दुआ करो मरने की मेरे अगर तंग हो मेरे आने से

आग नहीं जो डाल के पानी बुझा रहे हो तुम इसको

ये इश्क है और भी भडकेगा कहां दबता है दबाने से

ये दामन का दाग नहीं जो धोने से मिट जायेगा

इक बार लगा जो इज्जत पे तो मिटता नहीं मिटाने से

ये आदम का बच्चा है ठोकर खाकर ही सीखेगा

कहां समझता है कोई औरों के समझाने से

इन्सां की कोई कद्र नही और पत्थर पूजते फिरते हो

कहां तुझे रब मिलना है यूं उल्टे रस्ते जाने से

15 फ़रवरी 2010


पास तेरे आके तुझ से दूर हो जाता हूँ मै


क्या बताऊं किस कदर मजबूर हो जाता हूँ मै


मिल के भी तुझ से कभी मिल नहीं पाता मै जब


ये समझ आता नहीं फिर मिलने क्यों आता हूँ मैं


बात कर सकता हूँ पर हर बात कर सकता नहीं


जाहिर तुम पे मै कोई जज्बात कर सकता नहीं
पर दूर तुझसे रहके तेरे पास आ जाता हूँ मै


अपनी मनमर्जी का मालिक खुद को तब पाता हूं मै


ना इजाजत चाहिये ना पूछनी मर्जी तेरी


जी में जो आता है सब बेखौफ कर जाता हूँ मै


पास तेरे रहके तुझ को छूना तक मुमकिन नहीं


पर दूर तुझ से रह तेरी बाहों में आ जाता हूँ मै


दिलका हर इक दर्द तब तुझसे मै बांट पाता हूँ


मन की हर इक बात तब तुझ से कर जाता हूँ मैं


अठखेलियां करना भी तब तुझको बुरा लगता नहीं


पास में और दूर में कितना फर्क पाता हूँ मैं
तूँ ही बता कि पास तेरे आके मुझ को क्या मिला


दूर तुझसे रह के फिर भी कुछ तो पा जाता हूँ मै


नजदीक रहके इस कदर रखनी क्या इतनी दूरींया


कहने को साथी साथ है और तन्हा हो जाता हूँ मै

कितनी तकलीफ हुई होगी, सोचो तो जरा


कितनी तकलीफ हुई होगी, उस शख्स को, तुम सोचो तो जरा

जिसे सफर के अन्त में पता चले, वो जितना चला बेकार चला

मन्जिल हो अभी भी दूर खड़ी, और खत्म हुआ जिसका रस्ता

मन्जिल ने ही जिस राही से कहा, नादान, तूँ नाहक दौड़ा किया

मुझ तक कोई राह नहीं आती, तूँ मुझ तक पंहुच नहीं सकता

मेरे चारों और मीलों खाई, कोई जिसको लाँघ नहीं सकता

राही भी अजब दीवाना था, अपनी धुन में मस्ताना था

उस राही ने मन्जिल से कहा, काहे को रही इतना इतरा

जिस हद तक आता था रस्ता, उस हद तक तो मैं आ पंहुचा

तुम चाहती तो बाकी दूरी पल भर में ही मिट सकती थी

इक कदम बढ़ाना था तुमको, मुझको मन्जिल मिल सकती थी

लेकिन तुमने चाहा ही नहीं, मेरे चाहने से होना था क्या

आगे का सफर संभव ही नहीं, ना तुम चाहो ना चाहे खुदा

आया तो बड़ी चाहत से था, अब अनचाहे मन लौट चला

फिर भी तेरे जीवन में कभी, इतना सूनापन आ जायेगा

राह दिखे ना राही ही और तूँ खुद से घबरा जायेगा

तब अहम किनारे पे रख के, इक बार पुकारना धीरे से

उस रोज भी तेरा दिवाना, तेरे आसपास मिल जायेगा

वीरान पड़ी तेरी राहों का, फिर से राही बन जायेगा

आखिर तो तेरा दीवाना है, तुझ पे ही जान लुटायेगा

इसे प्यासे की मजबूरी कहो या चाह कहो दीवाने की

इसमे तेरा कोई दोष नही, बस मेरी ही नादानी है
जाने मै कैसे भूल गया मेरा सफर तो रेगिस्तानी है


मेरी रेतीली राहो में सदा सूरज को दहकता मिलना है
बून्दों के लिये यहाँ आसमान को तकना भी बेमानी है

बदली के बरसने की जाने उम्मीद क्यों मेरे मन में जगी
यहां तो बदली का दिखना भी , खुदा की मेहरबानी है

यहाँ रेत के दरिया बहते हैं कोई प्यास बुझाए तो कैसे
प्यासे से पूछो मरूथल में किस हद तक दुर्लभ पानी है

यहाँ बचा बचा के रखते हैँ सब अपने अपने पानी को
यहाँ काम वही आता है जो अपनी बोतल का पानी है

पानी पानी चिल्लाने से यहाँ कोई नहीं देता पानी
प्यासा ही रहना सीख अगर तुझे अपनी जान बचानी है

मृगतृष्णा के पीछे दोड़ा तो दौड़ दौड़ मर जायेगा
पानी तो वहाँ मिलना ही नही, बस अपनी जान गंवानी है

इसे प्यासे की मजबूरी कहो या चाह कहो दीवाने की
वो जानता है मृगतृष्णा है पर मानता है कि पानी है

फिर इस में तेरा दोष कहाँ , ये मेरी ही नादानी है
तुम तो थी ही मृगतृष्णा मैनें ही समझा पानी है

24 नवंबर 2008

अथरी

अथरी एक गाँव है। यह बिहार राज्य के तिरहुत प्रमंडल के सीतामढी जिले के रुन्नीसैदपुर प्रखंड में है। यह गाँव लखनदेई नदी के किनारे अवस्थित है। इस गाँव में सारी सुविधाएं मौजूद हैं। मेरा नाम टुल्लुजी है । मेरा घर अथरी गाँव के हरदीडीह मुहल्ले में है।