22 फ़रवरी 2010

शायद कुछ भी हासिल ना हो तुझ को मेरे वीराने में

वापिस लौट जा ऐ राही या राह बदल ले फिर कोई

शायद कुछ भी हासिल ना हो तुझ को मेरे वीराने में

तेरा मिलना तय था बेशक जीवन के इस सफर में लेकिन

तेरा बिछुड़ना सोचा तक नही हमने जाने अनजाने में

कुछ भी मुमकिन नजर तुझे नही आता अपनी कहानी में

पर कुछ भी नामुमकिन सा नही ऐ दोस्त मेरे अफसाने में

रंग रूप या धन दौलत यौवन फर्क ये सब मिट सकते हैं

पर फर्क उम्र का मिट नहीं पाना तेरे मेरे मिटाने से

फूल से ज्यादा हमको फूल की महक सुहानी लगती है

फूल कहाँ अच्छा लगता है खिलता हुआ वीराने में

तेरे गोरे बदन से ज्यादा गर मन में तेरे कोई ना झांके

तो फर्क बचा क्या गली के आशिक और तेरे दीवाने में

मंजिल बदल नही सकते तो आ राहों को बदले हम

हमसफर रहो तुम राहो में तो मजा है चलते जाने में

मंजिल हो कोई राहे हो कोई मतलब तो तेरे साथ से है

तुम साथ रहो तो फर्क नहीं मंजिल खोने या पाने में

बात वही होत्ती है तो फिर फर्क क्यों इतना होता है

खुद वही बात समझने में और औरो को समझाने में

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