22 फ़रवरी 2010

फिर धीरे-धीरे यहाँ का मौसम बदलने लगा है

फिर धीरे-धीरे यहाँ का मौसम बदलने लगा है,
वातावरण सो रहा था, अब आँख मलने लगा है।
पिछले सफ़र की ना पूछो, टूटा हुआ एक रथ है,
जो रुक गया था कहीं पर फिर साथ चलने लगा है।
ये घोषणा हो चुकी है कि मेला लगेगा यहाँ पर,
हर आदमी घर पहुंचकर, कपड़े बदलने लगा है।

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