15 फ़रवरी 2010


पास तेरे आके तुझ से दूर हो जाता हूँ मै


क्या बताऊं किस कदर मजबूर हो जाता हूँ मै


मिल के भी तुझ से कभी मिल नहीं पाता मै जब


ये समझ आता नहीं फिर मिलने क्यों आता हूँ मैं


बात कर सकता हूँ पर हर बात कर सकता नहीं


जाहिर तुम पे मै कोई जज्बात कर सकता नहीं
पर दूर तुझसे रहके तेरे पास आ जाता हूँ मै


अपनी मनमर्जी का मालिक खुद को तब पाता हूं मै


ना इजाजत चाहिये ना पूछनी मर्जी तेरी


जी में जो आता है सब बेखौफ कर जाता हूँ मै


पास तेरे रहके तुझ को छूना तक मुमकिन नहीं


पर दूर तुझ से रह तेरी बाहों में आ जाता हूँ मै


दिलका हर इक दर्द तब तुझसे मै बांट पाता हूँ


मन की हर इक बात तब तुझ से कर जाता हूँ मैं


अठखेलियां करना भी तब तुझको बुरा लगता नहीं


पास में और दूर में कितना फर्क पाता हूँ मैं
तूँ ही बता कि पास तेरे आके मुझ को क्या मिला


दूर तुझसे रह के फिर भी कुछ तो पा जाता हूँ मै


नजदीक रहके इस कदर रखनी क्या इतनी दूरींया


कहने को साथी साथ है और तन्हा हो जाता हूँ मै

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