18 फ़रवरी 2010

रंग नया है लेकिन घर ये पुराना है


रंग नया है लेकिन घर ये पुराना है,
ये कूचा मेरा जाना पहचाना है ।
क्या जाने क्यों उड़ गए पंछी पेड़ों से,
भरी बहारों में गुलशन वीराना है ।
सारी बस्ती चुप की गर्द में डूब गयी,
शिकवा जो करता है वह दीवाना है ।
मेरी मंजिल शहर ऐ वफ़ा से आगे है,
तुमको तो दो चार कदम ही जाना है।
आपका दामन कल तक मेरा दामन था,
आज वह दिन ख्वाब है या अफसाना है।
रिंद जहाँ सब एक जाम से पीते थे ,
आज न वो मैख्वार न वो मैखाना है ।
आओ पहला जाम पियें "रजनीश" के नाम ,
जिसने ज़हर के घूँट को अमृत जाना है ..... ॥

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