18 फ़रवरी 2010

इन्सां की कोई कद्र नही और पत्थर पूजते फिरते हो

भूखा प्यासा ठुकराया सा जीना भी कोई जीना है

चुपडी ना सही रूखी तो मिले मतलब तो है खाने से

फिसलन भरी राहों में अक्सर कदम फिसल ही जाते हैं

किसे नहीं मालूम सभलना बेहतर है गिर जाने से

जिन राहों मे फिसलन हो वहां कदम संभल के रखना तुम

संभल के चलना ही बेहतर है गिर कर के पछताने से

बाज़ार नहीं उतरा तो क्या पता कि कीमत कितनी है

हासिल क्या है घर बैठे खुद अपने दाम लगाने से

इस जान के जाने से ही तेरे दर पे आना छूटेगा

दुआ करो मरने की मेरे अगर तंग हो मेरे आने से

आग नहीं जो डाल के पानी बुझा रहे हो तुम इसको

ये इश्क है और भी भडकेगा कहां दबता है दबाने से

ये दामन का दाग नहीं जो धोने से मिट जायेगा

इक बार लगा जो इज्जत पे तो मिटता नहीं मिटाने से

ये आदम का बच्चा है ठोकर खाकर ही सीखेगा

कहां समझता है कोई औरों के समझाने से

इन्सां की कोई कद्र नही और पत्थर पूजते फिरते हो

कहां तुझे रब मिलना है यूं उल्टे रस्ते जाने से

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