18 फ़रवरी 2010

जब भी चाहा जिन्दगी को खूबसूरत मोड़ दे

जिन्दगी मे जब सही कोई फैसला हमने लीया

वक्त ने हर बार हमको गल्त साबित कर दिया

लम्हों की क्या कद्र थी जाकर पता ये तब चला

वक्त ने हिसाब जब एक एक लम्हे का लिया

क्या पता कब वक्त होता है किसी पे मेहरबाँ

वक्त ने जब भी लिया हम से तो बदला ही लिया

हम तो नासमझी मे यारा भूल कोई कर गये

खुद से भी तो पूछ लो तुमने आखिर क्या किया

जब भी चाहा जिन्दगी को खूबसूरत मोड़ दे

हालात ने इस जिन्दगी को और बदरंग कर दिया

लम्हा लम्हा करके आखिर काट ही दी जिन्दगी

आखिरी लम्हो मे क्या सोचे, कि आखिर क्या किया

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